चले आओ कहा हो तुम ..

चले आओ कहा हो तुम ..

चले आओ कहाँ हो तुम, तुम्हारी याद आती है
मिले थे जिस सफर में हम उसी की याद आती है।

जो मिलकर देखते थे चांद तारे रात में छत पर
वही रातें, वो सब बातें, अटारी याद आती है।

कभी हँसना,कभी रोना, रुलाकर फिर हँसा देना
सुहाने पलछिनों की वो सुनहरी याद आती है।

गिला जो कर नहीं पाए सजा उसकी मिली देखो
न कपटी ,ये सरल मन है,बहुत ही याद आती है।

तुम्हारी राह में पलकें बिछाकर बैठ जाते हैं
पुकारे दिल की हर धड़कन ओ साथी याद आती है।

मेरी दुनिया हुई गुमसुम न कोई साज बजता है
मधुर गीतों की ध्वनि झंकृत अनूठी याद आती है।

नहीं तनहाई में कटती,कठिन ये राह जीवन की
बिताई साथ, मधुवन की कहानी याद आती है।

बुलाती हैं वही राहें जहाँ से साथ गुजरे थे
तपन में छाँव की वो ही निशानी याद आती है।

हैं राही एक सफर के हम,हमारी एक मंजिल है
सजाए साथ सपनों की वो सुरमई याद आती है।

गुंजा पुंढ़ीर

युवा लेखिका , समाजिक शोधार्थी
बरेली , उत्तर प्रदेश

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