मोब लींचिंग की बढ़ती घटनाएं और उसका समाधान

एक सड़क पर ख़ून हैं,
तारीख़ तपका जून हैं,
एक उंगली हैं पड़ी,
और उस पे जो नाख़ून हैं,
जिस्म इसका हैं कहाँ,
मर गया के था ही न,
कौन थे वो लोग जिनके हाथ में थी लाठियां,
कौन थे वो लोग जिनके हाथ में थी लाठियां।।

दोस्तों नवीन चौरे की सवाल उठाती यह पंक्तियाँ आज हमारे देश की तल्ख़ हक़ीक़त बयान करती हैं और हुक्मरानों से साफगोई से सवाल पूछती हैं।

रकबर ख़ान, अलीमुद्दीन अंसारीज़, मोहम्मद इख़लाक़, तबरेज़ अंसारी, पहलू ख़ान, जूना अखाड़े के महाराज कल्पवृक्षगिरी, सुशील गिरी महाराज, कन्हैया लाल भील, तस्लीम अंसारी।

दोस्तों नाम की फेहरिस्त बहुत लंबी हैं, यह उन लोगों के नाम हैं जिन्हें हमारे आज़ाद लोकतांत्रिक भारत देश में भीड़ हिंसा का शिकार होना पड़ा। दोस्तों यह सभी मोब लींचिंग का शिकार हुए लोग हैं। किसी के घर के फ्रिज में रखे खाने को देखकर उसे मार डालना, किसी दाड़ी टोपी वाले शख़्स को नारा न लगाने की बिनाह पर मार डालना, किसी गरीब मज़लूम को केवल इसलिए मार डालना क्योंकि वो एक धर्म विशेष का था, किसी बूढ़े साधु को शक की बिनाह पर जान से मार देना। दोस्तों ऐसी घटनाएं हमारे देश में आज आम सी हो चुकी हैं।

कानून को हाथ मे लेती इस भीड़ को किसी की परवाह नहीं होती न इसे किसी मज़लूम को लहू लुहान करते हुए रहम आता हैं और न ही इसे अपराध के बाद होने वाली कार्रवाई का डर होता हैं, क्योंकि यह जानती हैं कि हिंदुस्तान में आज तक किसी भीड़ को सज़ा नहीं हुई हैं या फ़िर इन्हें इस बात का आशवासन होगा के चाहे जैसे भी कृत्य ये कर ले सत्ता में बैठे हुक्मरां इन्हें सज़ा नहीं होने देंगे।

दोस्तों आप समझ गए होंगे हम बात कर रहे हैं मोब लींचिंग की, उत्तर प्रदेश के दादरी में इख़लाक़ की जान लेने से चला यह सिलसिला आज मध्यप्रदेश के इंदौर में चूड़ी बेचने वाले तस्लीम अंसारी और नीमच के एक आदिवासी कन्हैयालाल भील तक पहुँच गया हैं। इस दरमियाँ हमने कितनी ही ऐसी बेरहम हत्याएं देखी हैं जो लोगों की एक भीड़ ने बड़ी आसानी से अंजाम दे दी और इस घिनौने अपराध में शामिल मुख्य आरोपियों को किस तरह हुकुमतों और हुक्मरानों का सरंक्षण मिला इस बात से हम अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं।

आपको एक मुख्य बात और बताता चलु की न्यूज़ आउटलेट दी वायर और हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2010 से अब तक भीड़ हिंसा में मारे जाने वाले लोगों में से 86% लोग मुसलमान हैं।

यह वहीं लोग हैं जिन्होंने वर्ष 1947 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जामा मस्जिद में से दी गई तक़रीर की तुम हिजरत के मुक़द्दरनामे से फ़रार की ज़िंदगी मत गुज़ारो को मानकर हिंदुस्तान को अपना वतन -ए- अज़ीज़ माना था। यह वही लोग हैं जो ज़िंदा रहते हुए इस देश मिट्टी को नमाज़ में सजदा करते वक़्त चूमा करते हैं और जब मर जाते हैं तो से इसी मुल्क़ की मिट्टी में मिल जाते हैं।

बहरहाल हम अपनी इस रिपोर्ट में वजह जान ने की कोशिश करते है की आख़िर यह भीड़ ऐसा क्यों करती हैं?

आखिर वह क्या कारण हैं जिसने इस भीड़ को लोगों को इस निर्ममता से मारने की छूट दे रखी हैं?

हरतोष सिंह बाल, एक सीनियर पॉलिटिकल जॉर्नलिस्ट ने एक इंटरनेशनल न्यूज़ आउटलेट को अपने इंटरवियू में बताया था कि इस भीड़ को एक क्लियर सेन्स होता हैं कि जो ये भीड़ कर रही हैं वो सही हैं और पुलिस उसमें मदाख़िलत नहीं करेगी, वो आगे कहते हैं कि मोब को यानी  इस भीड़ को लायसेंस हैं रूलिंग गवर्नमेंट का और उन लोगों का जो पॉवर में है। यह इस बात से आश्वस्त हैं की इनका प्रॉसिक्यूशन नहीं होगा यानी कि इन्हें सज़ा नहीं होगी।

पॉलिटिकल एनालिस्ट और स्ट्रैटजिस्ट का यह भी मानना हैं कि ऐसी घटनाओं के पीछे कई पॉलिटिकल पार्टीज़ का अपना फ़ायदा भी रहता हैं। जैसे 2014 येल रिसर्चर्स की एक स्टडी ने बताया था कि ऐसी हिंसाओं और दंगो के बाद बीजेपी का वोट शेयर 0.8% से बढ़ जाता हैं।

कुछ एक्सपर्ट्स का यह भी मानना हैं कि ऐसी घटनाओं को और ज़्यादा सपोर्ट इसलिए मिलता हैं क्योंकि पुलिस इसमें एक्शन नहीं लेती हैं ।

जैसे Centre For the studies of developing Societies in India नाम की एक आर्गेनाईजेशन ने इंडिया की पुलिस के रवैये या फिर पुलिस के एटीट्यूड पर एक सर्वे किया था। जिसका रिजल्ट चौकाने वाला था। उसमें यह पता लगा की इंडिया की आधी से ज़्यादा पुलिस फ़ोर्स को यह लगता हैं कि Muslims are prone to crime (मुसलमान अपराध के लिए प्रवृत्त हैं) यानी कि मुसलमान अपराधी ही हैं और 1/3rd पुलिस का यह भी मानना हैं कि जो गौ-हत्या जैसे जुर्म में अपराधी हैं, उन्हें इस तऱीके से मार देना नेचरल हैं। यानी कि अगर भीड़ उन्हें इस तऱीके से मार देती हैं तो उसमें कोई हर्ज़ नहीं हैं।

इसका एक और बड़ा कारण यह भी हैं कि हमारे पास मोब लींचिंग के खिलाफ़ एक प्रॉपर कंप्रेहेंसिव पार्लियामेंट लॉ नहीं हैं यानी कि एक सख़्त क़ानून जो कि इन हिंसाओं के ख़िलाफ़ एक डेटेरेंट का काम करें।

लेकिन ऐसा नहीं हैं कि किसी राज्य सरकार ने इसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की कोशिश नही की, मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पहल ज़रूर की हैं लेकिन कुछ राज्यों ने इसे बिल्कुल नकार दिया।

जैसे इंडिया में सबसे ज़्यादा लींचिंग उत्तर प्रदेश में हुई हैं, वर्ष 2012 से लेकर 2019 तक, 50 रिपोर्टेड केस थे जिनमें से 11 लोगों की हत्या हो चुकी हैं, लेकिन कितनी ही घटनाएं ऐसी होती हैं जो रिपोर्ट तक नहीं हो पाती। यानी कि असल में लींचिंग का शिकार हुए लोगों की संख्या इससे कही ज़्यादा हैं।

इस से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यू.पी. लॉ कमीशन के अंडर एक कमिटी बनाई थी, जिसने तफ़्तीश करके 128 पेज की रिपोर्ट और एक ड्राफ्ट बिल जिसका नाम था U.P. Combating of Mob lynching Draft Bill,  इन्हें तैयार करके उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिया था लेकिन हम सब जानते हैं कि उसका फिर क्या किया गया। उस रिपोर्ट और उस बिल पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।

ऐसी ही राज्यसभा मेम्बर के.टी.इस. तुलसी ने एक ड्राफ्ट बिल 2017 में संसद में इंट्रोड्यूस किया था, जिसका नाम Protection From Lynching Draft Bill, 2017 था। जो कि लींचिंग के काफ़ी आस्पेक्ट्स को कवर भी करता था लेकिन इस पर भी आज तक डिबेट तक नहीं किया गया।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तहसीन पूनावाला v/s यूनियन ऑफ इंडिया में कहा था कि –
ऐसे केसेस यानी कि मोब लीनचिंग के केसेस का जल्दी इंसाफ करने के लिए फ़ास्ट ट्रैक ट्रायल्स किये जाए जिसमे मोब लींचिंग के केसेस का फैसला जल्द से जल्द किया जाए। विक्टिम की फैमिली को कंपनसेशन दिया जाए, जो पुलिस इसमें कार्रवाई नहीं करती हैं या कार्रवाई करने में देरी करती हैं उनके ख़िलाफ़ भी डिससिप्लिनरी एक्शन लिया जाए। नोडल ऑफिसर हर डिस्ट्रिक्ट लेवल पर नियुक्त किया जाए जिसे डायरेक्ट ऐसे केसेस रिपोर्ट किए जाए लेकिन गवर्नमेंट ने ग्राउंड पर इन गाइडलाइन्स का कितना पालन किया यह हम अच्छे से जानते हैं।

दोस्तों इतनी कोशिशों और सरकार को इसको रोकने के लिए दी गई गाइडलाइन्स के बाद भी हमारे देश में मोब लीनचिंग्स रुक नहीं रही हैं। जब तक सरकार इसके आरोपियों के खिलाफ सख़्त सज़ा का प्रावधान नहीं करेगी तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।

दोस्तों अब आपकी ज़िम्मेदारी क्या हैं, यानी की आप लोग इसे रोकने के लिए  क्या कर सकते हैं।
दोस्तों कई मामलों में देखा गया हैं कि इन लीनचिंग्स का एक कारण फेक व्हाट्सअप फॉरवर्ड्स भी हैं इसलिए आपको फॉरवर्ड किए हुए मेसेज को वेरिफाई किए बिना यक़ीन नहीं करना हैं। आपको अपने पेरेंट्स, अपने घर मे भी सभी को यह बात सिखानी हैं कि ऐसी धार्मिक पोस्ट जो किसी व्यक्ति विशेष या फिर धर्म विशेष के ख़िलाफ़ हो जो कि केवल व्हाट्सअप फॉरवर्ड से आई हो उसके कई गुना ज़्यादा चांस हैं कि वो फेक हो। इसलिए आपको उस पर यकीन नहीं करना हैं।

अगर हम सब लोग मिलकर इसे रोकने और इन सब चीज़ों पर सरकार से सवाल करना शुरू कर देंगे तो बहुत जल्द ही ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता हैं।

आख़री में मार्टिन लूथर किंग की एक बहुत इंट्रेस्टिंग ऑब्जरवेशन आपको बताना चाहूँगा,  उन्होंने कहा था की ,

Law cannot make you love him but it can definitely keep you away from lynching”.

यानी कि क़ानून आपको उस से प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता लेकिन कानून आपको उसे भीड़ हिंसा में मार देने से ज़रूर दूर रख सकता हैं।

आपसी सौहार्द और भाईचारा बना रहना चाहिए।
धन्यवाद ❤️🙏🏻

लेखक –  ” वाजिद उल्ला क़ाज़ी “
( B.AJ.M.C. , DAVV, INDORE )

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