उपचुनाव का सियासी-साख संग्राम

मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव के लिए प्रचार अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है. इन 28 सीटों में से 25 सीटों के विधायक कांग्रेस से इस्तीफा देकर सिंधिया के साथ बीजेपी का दामन थाम लेने के साथ ही कमलनाथ के हाथ से सत्ता चली गई थी.

क्या तत्कालीन विधायकों ने अपना जमीर बेच कर खुद को बेच दिया था? या तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कामकाज, फैसलों से सहमत ना होकर ऐसा कदम उठाया कि जिससे सरकार गिरने की नौबत आ गई? या सिर्फ सिंधिया की राज्य में अनदेखी के कारण सिंधिया समर्थित विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे? वजह कुछ भी रही हो आखिर में भुगतना तो प्रदेश की जनता को पडा.

नेता जनता की भलाई करने की दुहाई देकर सत्ता में आते हैं और जनता की बेबसी या मासूमियत कहिए. इसे वही जनता आज फिर उन्हीं नेताओं को चुनने के लिए वोट करें जिन्होंने अपने निजी स्वार्थों के लिए कोरोना के समय प्रदेश की जनता की सेवा से मुंह मोड़ कर खुद के लिए मेवा जुटाने में लग गए थे. सिलावट जो कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे और मिलावट के खिलाफ कड़ी कार्यवाही में जुटे थे,
वहीं बीजेपी से मिलावट के सूत्रधार बने. सिलावट की बीजेपी में मिलावट से शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने और जनता की सेवा में इस कदर तन मन से जुट गए कि 1 माह तक कैबिनेट का गठन करना ही भूल गए. कोरोना के समय प्रदेश के ना ही स्वास्थ्य मंत्री, ना ही गृहमंत्री, ना ही वित्त मंत्री थे.

जनता महामारी से लड़ रही थी शिवराज इस दुविधा में थे की किसे, क्या मंत्री पद दिया जाए. आखिर बीजेपी में आए नए कांग्रेसी जन ने एक बार फिर बगावत कर ली तो कही हाथ से सत्ता चली जाएगी.

शिवराज का सत्ता के लिये लोभ देखिये कोरोना महामारी में भी बिना स्वास्थ्य मंत्री के 1 माह तक सरकार चलाते रहे. खैर अब समय आ गया, बीजेपी की तरफ से वही प्रत्याशी मैदान में हैं जो कांग्रेस छोड़कर आए थे. वो वक्त इन नेताओं का था, आज वक्त जनता के पास है. क्या वह इन नेताओं को फिर अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजेंगे?

जनता की नजर में क्या कोरोना महामारी के दौरान बीजेपी से मिलावट क्या वाजिब थी?

अब इन सभी सवालों का जवाब उपचुनाव के जरिये 10 नवंबर को जल्द ही मिलने वाला है.

विनय भारती✍️

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed