अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक संगठन मात्र नही, भारत भूमि की एक छात्र शक्ति ओर राष्ट्र शक्ति है

बात है उन दिनों की जब करीब-करीब 1000 वर्षो की गुलामी के बाद एक खुला आसमान भारत का प्रत्येक नागरिक देखने जा रहा था, ओर यह देश भरने जा रहा था एक ऐसी उड़ान जो अब वापस किसी पिंजरे में बन्द होने वाली नही थी, परन्तु इस उड़ान से पहले एक बहुत बड़ी चिंता थी ओर वह थी राष्ट्र की शैक्षणिक नींव, जो इस नवीन भारत का सम्पूर्ण भविष्य तय करने वाली थी। अनेको राष्ट्र चिंतको ने इस विषय पर महीनों विचार विमर्श कर कई शाम गुज़ारी, कई रात्रि को चैन की नींद तक नही ली, क्योंकि एक गौरवशाली क्षण था जब स्वर्णिम पक्षी के रूप में भारत सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्व करता था।

“वासुदेव कुटुम्ब” के सन्देश के साथ सम्पूर्ण विश्व को एकात्मता, अखण्डता व विश्व प्रेम का संदेश देता था। अपने आयुर्वेद ज्ञान, विज्ञान, व अध्यात्म से सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करता था। परन्तु कुछ नेतृत्व की कमी ने हमे बेड़ियो में जकड़ लिया था ओर इस स्वर्णिम पक्षी को पिंजरे में बंद कर अंग-अंग भंग कर इस भूमि को बंजर सा बन दिया था इसलिए यह चिंतन और अधिक महत्वपूर्ण था ओर इन विमर्शो के बाद एक शाम आती है …

राष्ट्रसमर्पण की ही एक नींव जिसकी स्थापना 1925 में ही नागपुर के रेशम बाग में कर दी गई थी। जिसका उद्देश्य ही राष्ट्र के सशक्तिकरण व भारत भूमि का पुनः निर्माण करना था ऐसे स्वर्णिम संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से यह आवाज़ आती है कि राष्ट्र को अब एक ऐसे छात्र संगठन की ज़रूरत है जो राष्ट्र के छात्रों को सर्वोच्च शिक्षा व भारत भूमि के प्रत्येक नागरिक का दैवीय दायित्व, राष्ट्र सर्वप्रथम की विचारधारा के साथ राष्ट्रसेवा के पथ पर अग्रसर रखने के प्रयास कर पाए, जो ज्ञान का आधार हो, शीलता का प्रतीक, और एकता व अखण्डता का शिला के समान अटल अनवरत खड़ा रहे. जिसका एक ही लक्ष्य हो इस राष्ट्र को पुनः विश्व शिखर पर स्थापित करना, जिसका एक ही उद्देश्य हो राष्ट्रहित सर्वोपरि और इसी एक क्षण से जन्म होता है इस राष्ट्र समर्पित छात्र संगठन “अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद” का।

लेकिन किसे ज्ञात था कि यह कुछ ही दशकों बाद राष्ट्र में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व मे भारत भूमि के तेजस्वी नेतृत्व का परिचय करवाने वाला है ओर विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन स्वरूप में इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में अमर होने वाला है। एक छोटी सी इकाई से शुरू हुआ यह स्वर्णिम संगठन आज उस आज़ादी के 73 वर्षों के बाद सिर्फ एक इकाई, एक प्रान्त या एक राज्य तक सीमित नही रहा अपितु सम्पूर्ण विश्व में हजारों इकाइयों के साथ लाखो राष्ट्रसमर्पित छात्रों के व्यक्तित्व विकास व राष्ट्रसेवा पंथी के मार्गदर्शक के रूप में स्थापित है। इन दशकों में इस ऐतिहासिक पृष्टभूमि ने भारत भूमि को हजारों नेतृत्व दिए जो ना सिर्फ राजनैतिक क्षेत्र से रहे बल्कि प्रशासनिक कार्यक्षेत्रों में भी अपनी भूमिका निभा चुके है। इस एक अकेली पृष्टभूमि ने इन वर्षों में एक ऐसे मंच की भूमिका निभाई है जहाँ से राष्ट्रसेवा के पथ पर लाखों छात्रों ने अपने कदम बढ़ाए।

छात्र जीवन से ही राष्ट्र के प्रति प्रेम व उस दैवीय दायित्व को मन मस्तिष्क में स्थापित कर इस पटल से छात्र अपने आगामी भविष्य पटल की ओर बढ़ते है और इसी एक कदमस्थान से इस नवीन भारत भूमि की नवीन नींव की भी शुरुआत होती है। जिसकी एक-एक ईंट यह राष्ट्रसमर्पित छात्र है। जो इस भूमि का गौरवशाली इतिहास लिखने की कलम को भी हाथ मे रखे हुए है, ओर इन लाखों ईंटो से ही बना एक कवच जो पश्चिम से टकरा कर आती हवाओं से राष्ट्र की अनवरत सुरक्षा कर रहा है, ओर लड़ रहा हु उन लाल बादलों से जो भारत भूमि को अनेको रूप में क्षति पहुचाने की मंशा रखते है। वह भी सिर्फ एक वन्दन के साथ “भारत माता की जय”, एक ध्वनि के साथ भारत “वन्दे मातरम”, एक ही अटलता के साथ “राष्ट्र हित सर्वोपरि”, हर एक आवाज़ बस एक ही स्मरण के साथ की “भारत माँ सर्वप्रथम”, “संगठन द्वितीय” ओर “अंतिम स्वयं” ओर यही वजह है कि यह राष्ट्र अब विश्व शिखर की और पूर्ण तीव्रता से आगे बढ़ रहा है और सम्पूर्ण विश्व इस भूमि को सर्श्वत वन्दन कर रहा है और विश्व शिखर इस भूमि का अभिनन्दन कर रहा है ।

नितिन मोहन डेहरिया
लेखक , पत्रकारिता शोधार्थी
( मध्य प्रदेश )

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed