महाकौशल के छिंदवाड़ा जिले में भाजपा को नही आई एक भी सीट, क्या भाजपा के लोकसभा विस्तारक के हटने का प्रभाव छिंदवाड़ा की सातों सीटो पर?

छिंदवाड़ा। चुनावी सरगर्मी में जिस तरह से भाजपा ने दो तिहाई बहुमत के साथ रिकॉर्ड तोड बहुमत हासिल की। वही प्रदेश के अलग- अलग जिलों के परिणामों को लेकर राजनीति के गलियारों में चर्चाएं भी है। जहां भाजपा प्रदेश में इतनी बड़ी बहुमत हासिल कर पाई वही कमलनाथ का गढ़ माने जाने वाले छिंदवाड़ा में सातों की सात सीटों पर कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल की। पिछले विधानसभा में भी यही परिणाम आया था, पर इस बार यह परिणाम दोहराने से सत्ता के जानकार इसे कमलनाथ का प्रभाव बता रहे है तो भाजपा को नीतियों का धरातल में सही तरीके से ना उतरना मान रहे है।

कुछ विशेषज्ञों ने जब इस पूरे जिले की शोध की तो जानकारी प्राप्त हुई की पिछले कुछ महीनों में भाजपा ने यहाँ कुछ ऐसे भी अकल्पनीय निर्णय लिए जो संगठनात्मक तरीके से शायद ही कहीं पहले हुआ हो। भाजपा ने जनवरी 2023 को अशोक यादव को लोकसभा का विस्तार बनाकर यहां भेजा था जिसके बाद से जिले में एक पूर्णकालिक कार्यशैली का कार्य आरंभ हुआ। कार्यकर्ताओं से बात करके यह जानकारी भी प्राप्त हुई की विस्तारक के आने के बाद भाजपा उन दुरुस्त स्थानों पर भी अपनी जड़े मजबूत करने में लग गई थी जहां अभी तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था।

मंडल अध्यक्षों की कार्यशैली में भी परिवर्तन देखने को मिला था। नीचे के कार्यकर्ताओं की बात जिला प्रबंधन समिति की बैठकों में उठने लगी, 8 माह में विस्तारक ने जिले को एकजुट करने में काफी मेहनत की लेकिन अज्ञात कारणों के चलते उन्हें विधानसभा चुनाव से दो माह पूर्व ही वापस बुला लिया गया और भोपाल में प्रदेश चुनाव प्रभारी के अंतर्गत काम में लगाया गया और 130 विधानसभा क्षेत्रों के आंकलन एवम चुनाव के दौरान रणनीतियों के क्रियान्वन हेतु लगा दिया गया।

छिंदवाड़ा के कई राजनैतिक जानकर बताते है की छिंदवाड़ा में आज तक कोई भी पूर्णकालिक जो निष्पक्ष कार्य को बढ़ावा देता हो ऐसा लंबे समय तक यहां नही टिक पाया। खासकर भाजपा की आंतरिक कलह ही यह संभव नहीं होने देती। इनका कहना है की संभवत अशोक यादव भी ऐसी ही किसी साजिश का शिकार हुए है, क्योंकि जिले में जिला भाजपा में व्यक्ति विशेष का एकाधिकार समाप्त होने लगा था जिसके कारण प्रबंधन समिति में जमीनी विषय पहुंच रहे थे जिसके कारण संगठन ने सबसे संवेदनशील समय में उनको भोपाल के दाइत्व में स्थानांतरित कर दिया।

सूत्र बताते है की इसी एकाधिकार वाले व्यक्ति के कारण ही पिछले दो वर्षो से जिले के कई पूर्व जिला अध्यक्षों और वरिष्ठ नेताओं का असम्मान होने लगा था जिसके कारण जिले में बगावत के सुर भी तेजी से उठ रहे थे। 7 सीटों के कुछ प्रत्याशियों से बात करने के बाद यह भी मालूम हुआ कि कई ऐसे प्रत्याशी थे जो अशोक यादव के रहते हुए चुनाव प्रबंधन हो ऐसा विचार रखते थे और इनके जाने से सीधा असर चुनाव प्रबंधन में पड़ा। कई प्रत्याशियों ने यह भी कह दिया की जहां हम समन्वय नही कर पाते थे या जहां हम कमजोर पड़ते थे वहां अशोक यादव अपने अनुभव के माध्यम से हमारा और सभी कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करते थे जिसके फलस्वरूप ही अभी तक जिले में एक नया जोश आया। अब देखना ये होगा की छिंदवाड़ा की सीट का मंथन करने के बाद भाजपा का प्रदेश संगठन इसमें क्या निर्णय लेता है ।

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