किराया माफ़ी नहीं आसान, बेबस शिवराज सरकार?
कोरोना के संक्रमण के शुरुआती दौर में किसी को भी यह अंदेशा नहीं था कि यह महामारी भारत में इतना विकराल रूप ले लेगी और संक्रमण से बचाव के लिए लगाए लॉक डाउन को सरकार को लगातार बढ़ाना होगा।
लेकिन बढ़ते संक्रमितों के आंकड़ों के साथ अब देशभर में जनता की बौखलाहट भी बढ़ रही है। मानों प्रशासन जितना संक्रमण के आगे पस्त नज़र आ रहा है, ठीक वैसे ही शासन भी इन जरूरतमंदों की अनदेखी में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। गौर किया जाना चाहिए कि इतने लंबे लॉक डाउन में गरीबों के खाते में आये 500 रुपये और 5 किलो अनाज कब तक इन्हें शांत रख सकेगा और उसके बाद क्या!
संकट की इस घड़ी में दिहाड़ी मजदूरी वाले श्रमिकों व छात्रों की आर्थिक स्थिति की चिंता करते हुए गृह मंत्रालय में मार्च के अंत में निर्देशित किया था कि-
‘कोरोना वायरस से महामारी फैलने के दौरान ऐसे लोगों से कोई भी मकान मालिक एक महीने तक किराया नहीं ले सकेंगे।
आदेश में आगे कहा गया है कि अगर किसी मकान मालिक ने ऐसे कामगारों या छात्रों पर किराया देने के लिए दबाव बनाया या फिर उनसे जबरन मकान खाली कराने की कोशिश की तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’
लेकिन आदेश के मुताबिक एक महीना ख़त्म होने से पहले से ही कई किरायेदारों और छात्रों की शिकायतें अलग-अलग माध्यमों से मिल रही है जिसमें मकान मालिकों से किराये के लिए दवाब बनाने और किराया माफी की गुहार सरकार तक पहुँचाने की बात है। इन गरीब, बेबसों मजदूर छात्रों की किराया माफ़ी की मांग ने मध्यप्रदेश सरकार को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। क्योंकि इनकी मांग जितनी सुलझी है उससे कई ज़्यादा सरकार को उलझाने वाली भी।
भुखमरी और बेबसी की मजधार में किरायेदार
लॉक डाउन के चलते गुजरबसर के लिए भी सरकार से आश बांधे बैठे मजदूर वर्ग के किरायेदारों पर कर्ज का भार बढ़ता जा रहा है। पेट की आग से बिलखते परिजनों और मकान मालिकों के दबाव के आगे उसकी हिम्मत जवाब देने लगी है। इस वर्ग में दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले, घरों में काम वाली महिलाएं, रिक्शा चालक जैसे रोज कमाकर खाने वाले लाखों लोग है जो रोजगार की तलाश में दुसरे शहरों में आकर बसे है और आज महामारी के चलते अपने किराये के कमरों में निराश बैठे है,केवल इस मंशा में की शासन इनकी लाचारी पर तरस खाकर कोई सहायता करेगा।
लेकिन यह जरूरी भी नहीं कि इन्हें छोड़ शहरों में किराए से रह रहा हर व्यक्ति गरीब हो या अपना गुजर-बसर करने में असमर्थ हो।
क्योंकि एक बड़ा तबका शहरों में अच्छी जॉब के लिए भी किरायेदार बनकर रहता है। जो घर बैठे किराया आसानी से भर सकता है।
पढ़ाई के साथ किराये के कर्ज का बोझ ढो रहा छात्र
आज की स्थिति में देखें तो इंदौर भोपाल जैसे महानगरों में लाखों की तादाद में छात्र छात्रवासों व कमरे किराये पर लेकर पढ़ने के लिए रहते हैं। लगातार बढ़ते लॉक डाउन के साथ इन छात्रों पर भी मकान मालिकों का दबाव और किराये का संकट बना हुआ है।
अपनी मांग को सरकार के कानों तक पहुँचाने के लिए इन छात्रों ने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। छात्र रोज ट्विटर पर #छात्रों_का_किराया_माफ_करो। हैजटैग के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को टैग करके किराया माफी की गुहार लगा रहें है। इस मुहीम में कई छात्र संगठनों ने भी अलग-अलग स्तरों पर इस मांग को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र लिखें है। वहीँ प्रदेश के लोकसभा सांसदों ने भी उत्तरप्रदेश, दिल्ली की तर्ज़ पर किराया माफी को लेकर शिवराज सरकार को पत्र लिखें है। राजस्व स्थिति बहाल के लिए शराब के ठेकों में उलझी सरकार का सारी स्थिति जानकर भी अनजान बना रहना! इस समस्या का हल तो नहीं है लेकिन सच ये भी है कि मुख्यमंत्री मामा की ओर से अपने प्यारे भांजे-भांजियों के लिए इस मुश्किल घड़ी में कोई भी सुखद समाचार अब तक नहीं आया है ।
होस्टल प्रबंधकों व मकान मालिकों की बढ़ती मुश्किलें!
जरूरी नहीं है कि हर मकान मालिक आर्थिक रूप से इतना सक्षम हो कि किराया माफ कर सकें क्योंकि शहरों में कई परिवार ऐसे है जिनका गुजरबसर उनके किरायेदार के दिये पैसे से ही हो रहा है। इस श्रेणी में कई वृद्ध, सिंगल पेरेंट्स और असहाय मकान मालिक है जिनके जीने का एकमात्र सहारा किराये से मिली रकम है।
होस्टल प्रबंधकों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही बनी हुई है शहरों में 90% होस्टल्स लीज पर संचालित किए जा रहे है तो वहीँ 60% ऐसे होस्टल मालिक है जो खुद दूसरे शहरों से आकर यहां किरायेदार बनकर आजीविका के लिए शहरों में होस्टल का संचालन कर रहे है। छात्रों मजदूरों की तरह इनकी बेबसी भी अब तक इनके तक ही सीमित है। प्रबंधकों के लिए 2019-20 का साल वैसे भी आर्थिक रूप में कमजोर रहा है।
बावजूद इसके प्रतिदिन होस्टल की ईएमआई के लिए दबाव बनता जा रहा है। इस लॉक डाउन में होस्टल ख़ाली होने के बाद भी परिवार की जरूरतों, स्टाफ़ की तनख्वाह, आ रहें बिजली बिल और जमा कॉशन मनी के सुरक्षित रहने की चिंता दिनरात खाएं जा रही है।
यहीं हाल उन सभी दुकानदारों का भी है जो मालिक होकर भी किराएदार है।
हमारी सूझबूझ और सरकार की जिम्मेदारी दोनों जरूरी
मौजूदा स्थिति में तो यहीं सही है कि महामारी के आगे शासन-प्रशासन पस्त है और हमें कोरोना के भय में सतर्कता के साथ जीने की आदत डाल लेना चाहिए। लेकिन फिर भी किरायेदारों और मकान मालिकों की इस बड़ी समस्या का हल आत्मीयता के साथ आपसी मानवीय संवेदनाओं के आधार पर ही खोजना होगा। इस स्थिति में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उचित निर्देशों के साथ अपने प्रदेश की जनता का हित करें ताकि जनमानस में शान्ति और विश्वास बना रहे। जिन छात्रों को आवास योजना का लाभ मिल रहा है, उन्हें तो कोई समस्या नहीं होंगी लेकिन बाकी छात्रों को आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर रियायत देनी होंगी। ठीक उसी तरह मजदूरों,होस्टल प्रबंधकों और दुकानदारों को भी आपसी तालमेल के लिए विचार करना होगा। प्रदेश के लाड़ले मामा शिवराज को भी बाकी राज्यों की तरह किराया माफी के लिए कोई सहज राह निकालनी होगी ताकि किसी भी वर्ग का अहित न हो। क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में प्रदेश के हर वर्ग को एकजुट रखना जरूरी है तभी हम इस लाइलाज बीमारी से जीत पायेंगे।
कुलदीप नागेश्वर पवार (पत्रकार)
पत्रकारिता भवन इंदौर
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Image: BBC