“राष्ट्र-सर्वप्रथम” – एक वैदिक विचारधारा
नितिन मोहन डेहरिया
लेखक , पत्रकारिता शोधार्थी , युवा वक्ता
इंदौर , मध्य प्रदेश
विचारधारा की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह प्रत्येक व्यक्ति के विचार और व्यक्तित्व के अनुसार यह निर्मित होती है पर जब समाजिक विचारधारा की बात की जाती है तो सैकड़ों विचारधाराएं सामने आती हैं। किंतु इन सभी के बीच एक ऐसी विचारधारा है जिसकी उत्पत्ति अन्य विचारधाराओं से पहले समस्त विचारधाराओं की जननी के रुप में हुआ था, हज़ारो वर्ष पूर्व वैदिक कालखण्ड के पन्नों को अगर पलटा जाय तो यह तथ्य सामने निकल कर आते हैं। पर तब यह विचारधारा ही नहीं अपितु जीवन पथ था जो गुरुकुल से शिक्षण स्वरुप प्राप्त हुआ करता था। इसका मूल अर्थ सिर्फ मातृभूमि के लिए सारा जीवन समर्पित करके अंत में सर्वस्य भी न्योछावर करने के शौर्य के साथ जीवन जीना था।
हमारे इतिहास के स्वर्णिम वीर योद्धाओं के जीवन काल को देख कर जाना यह पूर्णतः जाना जा सकता है। फिर चाहे बात रानी लक्ष्मी बाई की हो या महाराणा प्रताप की .. महाराज छत्रपति शिवाजी की हो या पृथ्वीराज चौहान की। यह संकल्प प्रत्येक योद्धा के अंदर विद्यमान तो था ही लेकिन गुरु द्वारा दी गई शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति पर पूर्ण रूप से मौजूद थी। समय के कालखण्डों के साथ-साथ व्यक्ति तो बदले नही बदला तो सिर्फ जीवन का यह सार जो सिर्फ उन सदियों में नही अपितु आज़ाद भारत का सपना पूर्ण करने वाले व्यक्तित्वों में भी देखा गया , चाहे बात भगत सिंह की हो या चन्द्रशेखर आज़ाद की जो अंतिम सांसो में भी मातृभूमि की मिट्टी को माथे पर लगाकर अमर हो गए। ऐसे हज़ारो लाखो शौर्य प्रतीकों ने इस विचारधारा को बनाया है। जो आज पूरे विश्व मे सबसे बड़ी विचारधारा है, जो आज सिर्फ भारत ही नही बल्कि विश्व के 40 से अधिक देशों तक पहुँच रही है। आज इसी विचारधारा के कारण हमारे भारत को विश्वपटल पर एक अटल पहचान मिली है, इसी विचारधारा रूपी सिंह में सवार भारत भूमि विश्व शिखर की ओर बढ़ रही है, जहां से विश्वगुरु के पटल से वापस यह सम्पूर्ण विश्व को मार्गप्रशस्त करके देने वाली है।
यही विचारधारा है जिसने अनेकताओं के भारत को एकता के सूत्र में बांधा है, वन्दे माँ भारती के जयकार में समाहित यह विचारधारा प्रत्येक ह्रदय में समाहित है। माँ भारती का प्रत्येक जयघोष सम्पूर्ण भारत को एक स्वर में साथ लाने की शक्ति रखता है, गुजरात से लेकर अरुणाचल तक…..और, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, भारत माता की जय दिव्य मन्त्र के रूप में है। जिसपर पूरा भारत गूंज उठता है आकाश गरज उठता है और समंदर इस गूंज की लेह में लहराता है। हवाएं इस ताल में साथ निभाती हुई बहती है।
जम्बूदीप का यह सौभाग्यशाली हिस्सा भारत भी स्वयम में एक दिव्य भूमि है। जहां स्वयं ईश्वर का वास है भूमि के प्रत्येक कंकण में प्रभु का स्मरण किया जाता है, यही वो भूमि है जिसने वर्षो तक सम्पूर्ण विश्व का मार्ग बताया और आने वाले वक्त में भी यही भूमि विश्वगुरु बनने वाली है, जिससे सिर्फ प्रत्येक राष्ट्र ही नही अपितु सम्पूर्ण सृष्टि प्रेरणा प्राप्त करेगी। यह विचारधारा संस्कृत के मंत्र “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” का एक अभिन्न अंग है, समय के साथ साथ विचारधारा का स्वरूप बदला पर यह भाव ही इस विचारधारा का सार है, जो अमर है, अटल है, अजय अडिग है, और यही वो विचारधारा है जो इस भारत भूमि को पुनः विश्व शिखर पर स्थापित करने वाली है, ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ विचारधारा राष्ट्रवाद का एक अभिन्न अंग है जिसकी खोज भारत भूमि में ही राजा राम मोहन राय व उसके बाद बाल गंगाधर तिलक जैसे विराट व्यक्ति द्वारा की गई, परंन्तु वक्त के साथ साथ यह कारवां बढ़ता चला गया सन 1925 में संघ के प्रथम सरसंघचालक व संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से इस विचारधारा में एक नया ज़ोर आया। इसी विचारधारा को संघ की पृष्ठभूमि बनाई गई जो करीब 7 दशक के बाद आज संघ के संघर्ष परिश्रम से करोड़ो अनुयायियों और अनेको देश में केंद्र बिंदुओं के साथ वैश्विक विचारधारा बन गयी, जिसे विश्व के सबसे सकारात्मक और विकासशील श्रेष्ठ विचारधारा का स्थान प्राप्त है।