भविष्य की कसौटी: परीक्षा या ज्ञान?
भविष्य एक ऐसा शब्द जिसकी चिंता हर एक आम से लेकर ख़ास व्यक्ति को रहती है। और उसमें भी सबसे अधिक प्रतिशत उनके बच्चों का होता है, जो कि इस समय विद्यार्थी जीवन में अध्ययनरत हैं। हम बात करते हैं जब विद्यार्थी कि उस समय हमें ज्ञात होता है कि कुछ एक विद्यार्थियों को हर पल अपने भविष्य को लेकर चिंता रहती हैं और इसी चिंता के सागर में गोते लगाकर वे अपने भविष्य की चुनौतियों से भीड़ते है और अपने व्यक्तित्व विकास के साथ अन्य गुणों परिलक्षित करते हैं। लेकिन इसी के बीच क्या विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है ज्ञान और उसकी परीक्षा?
यह प्रश्न इसलिए भी है क्योंकि विश्वगुरु भारतवर्ष जो प्राचीन काल से ज्ञान, विद्या इत्यादि में अग्रणी रहा है, साथ ही साथ इसी ज्ञान के चलते भारत में आर्यभट्ट, सुश्रुत, व चाणक्य जैसे अनेक महाज्ञानी भी हुए। जिन्होंने विश्वस्तर पर भारत की छवि को विश्वगुरु भारतवर्ष बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यदि आप मेरे विचार को समझ पा रहे हैं, तब एक प्रश्न आपके मन को भी कचोट रहा होगा की क्या कभी इन महाज्ञानियों ने परीक्षाओं का मुख नहीं देखा होगा? परीक्षा जिससे हमारा प्रतिदिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आमना – सामना होता है और यह परीक्षा हमारे व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका भी निभाती है। इन परीक्षाओं का सामना , उन सभी महाज्ञानियों व महापुरुषों ने अपने जीवन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से किया है। इस आधार पर हम कह सकते है की एक विद्यार्थी के जीवन में जितना अहम किरदार ज्ञान का है उतना ही परीक्षा का भी इन सब के साथ यह भी जानना भी श्रेष्ठ है कि वर्तमान समय में क्या स्थिति हैं ज्ञान और परीक्षा की?
वर्तमान समय जहां ज्ञान अपने उच्च शिखर पर हैं, और एक विद्यार्थी जीवन में अहम किरदार निभा रहा है वहीं परीक्षा भी इससे अछूती नहीं है। आज विद्यार्थियों का भविष्य ज्ञान और परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरे बिना अधूरा है। जहां इनके भविष्य के लिए इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रशानिक सेवाओं के लिए अथक ज्ञान का भंडार है, तो वहीं जेईई, नीट, व यूपीएससी, एमपीपीएससी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाएं भी जिसमें सफल होकर विद्यार्थी अपने उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है। सच कहें तो ज्ञान और परीक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों ही एक उज्जवल भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से हो या फिर अप्रत्यक्ष रूप से।
लेखक – विशाल चौहान
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