बच्चों की मानसिकता को घेरे- कोरोना
कोरोनाकाल यह वास्तव में हमारे लिए अभूतपूर्व समय है, यह समय ही कुछ इस प्रकार से है जिसकी चिंता हरेक आम से लेकर खास को है, विशेष रूप से बच्चों को जिन्हें इस तथ्य को स्वीकार करने में कठिनाई होगी कि उनका जीवन पूर्व की तरह सामान्य जीवन ना होकर बुरी तरह से बाधित हो चला है। बच्चों को सबसे अधिक चिंता अपने आस – पास हो रही है असामान्य सी गतिविधियों को देखकर हो रही होगी परंतु यह चिंता उस वक्त और अधिक बढ़ जाती है जब बच्चे इन असामान्य सी गतिविधियों को समझने लगते हैं वह जिस प्रकार की चिंता का अनुभव करते हैं वे वयस्कों के समान तक हो सकती है, इनमें मरने का डर, वह डर जो अपने प्रियजनों को मार सकता है और चिकित्सा उपचार का भय शामिल है । और यही भय और चिंता बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से मानसिक तनाव से ग्रस्त बना रही है । Covid – 19 ( corona virus disease 2019 ) बेशक हम सबके जहन में होगा कि इस असामान्य महामारी को 2 वर्ष पूर्ण होने को चला है इस बीच हमने कोरोना की 2 भयावह लहरों के साथ तीसरी अत्यधिक संक्रमित लहर भी देख चुके हैं। जिस तरह इसने हम सभी के असामान्य से जीवन को और अधिक जटिल बनाया है यह भी हमसे अछूता नहीं रहा है और यदि हम यहां बात करते हैं, अभिभावकों की तब उनके समक्ष स्थिति अकल्पनीय रही होगी यद्यपि सभी बच्चे परिवर्तन का अनुभव करते हैं लेकिन बच्चों को होने वाले परिवर्तनों को समझने में कठिनाई हो सकती है और छोटे व बड़े दोनों बच्चे चिड़चिड़ा और गुस्से में महसूस कर सकते हैं बच्चे अपने माता – पिता के करीब होने या उन पर उच्च मांग की आवश्यकता को बढ़ा भी सकते हैं जबकि कुछ माता – पिता या ख्याल करने वाले स्वयं अत्यधिक दबाव में हो सकते हैं ।
- एक बचपन का जमाना था।
- जिस में खुशियों का खजाना था।
- चाहत – चांद को पाने की थी।
- पर – दिल तितली का दिवाना था।।
कोमल प्रसाद साहू जी की कविता की कुछेक पंक्तियां अपने आप में बच्चों के बचपन को समेटे हुए रखती है परंतु मेरा मन उस वक़्त झंझोर जाता है , जब बच्चों की मानसिक स्थिति का घेराव किए , कोविड के विश्व स्तरीय वास्तविक आंकड़े मेरे समझ प्रदर्शित होते हैं । जिनमें कॉरोना की वजह से –
कई घरों को बहुआयामी गरीबी में ढकेलना
महामारी के कारण संयुक्त रुप से सेव द चिल्ड्रन एवं यूनिसेफ द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार लगभग के 150 मिलियन बच्चे बहुआयामी गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं वह भी शिक्षा , आवास , पोषण व पानी जैसी आवश्यक वस्तुओं के अभाव में 70 से अधिक देशों के डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों को पता चलता है कि लगभग 45 % बच्चे कोरोना वायरस महामारी से पहले भी इनमें से कम से कम एक महत्वपूर्ण जरूरत से वंचित थें । और वर्तमान डाटा तो आपके समक्ष एक भयावह तस्वीर चित्रित करता ही है।
सीखने के संकट का सामना करना
188 देशों ने महामारी के दौरान देशव्यापी स्कूल बंदी लगाई , जिससे 1.6 बिलियन से अधिक बच्चे व युवा प्रभावित हुए , हालाकि महामारी से पहले भी बच्चों की शिक्षा संकट में थी परंतु महामारी ने इन और असमानताओ को तेज किया है । वहीं विश्व के कम से कम एक तिहाई लगभग 463 मिलियन बच्चे ( जब कॉरोना ने अपने स्कूलों को बंद कर दिया था ) वह दूरस्थ शिक्षा भी प्राप्त ना कर सके बच्चे जिन्हें यूं तो भारतीय संस्कृति में भगवान का दर्जा प्राप्त है परंतु सिक्के के दूसरे पहलू स्वरूप ना केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में बच्चों के साथ हुई हिंसा व शोषण के मामले आते हैं विश्व भर में लगे लोकडाउन के चलते जो व्यक्ति ने तनाव महसूस किया होगा तब उसने बच्चों पर हिंसा व शोषण जैसे गंभीर कृत्य को भी अंजाम दिया होगा । यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड -19 के कारण बच्चों के खिलाफ हिंसा का खतरा बढ़ गया है । वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए उपायों के कारण समर्थन सेवाएं कमजोर हो गई और 104 देशों में 1.8 बिलियन बच्चे रहते हैं जहां कोविड -19 के कारण हिंसा के रोकथाम और प्रतिक्रिया सेवाएं बाधित हुई है । कोविड -19 संकट 20 साल के प्राप्ति के बाद श्रम में पहली वृद्धि का कारण भी बन सकता है सन 2000 के बाद से बाल श्रम में लगभग 94 मिलियन की कमी आई थी लेकिन यह लाभ अब जोखिम में है । अन्य प्रभावों के बीच कोविड -19 गरीबी में वृद्धि का कारण भी बन सकता है और इसलिए गरीबी में मात्र 1 % की वृद्धि से कुछ देशों में बाल श्रम में कम से कम 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है । इन आंकड़ों को देखने के बाद हम महसूस कर पा रहे होंगे कि बच्चों के लिए स्थिति कितनी भयावह हो चली है उनके इस छोटे से मस्तिष्क के लिए कॉविड ने स्थितियां कितनी असामान्य और जटिल कर रखी है।
लेखक – विशाल चौहान
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