मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बनी मजाक, बीमा राशि के नाम पर किसानों के खातों में 100 रुपये से भी कम राशि हुई जमा

मध्यप्रदेश में किसानों के साथ एक बार फिर धोखा या यूं कहें मजाक देखने को मिला है.जिस प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर किसान आस लगाये बैठे है वह अब उनके लिए मजाक बनकर सामने आया है. किसानों को खाते में 7 रुपये से लेकर 100 रुपये तक कि ही राशि फसल बीमा के नाम पर मिली है.

आगर-मालवा। अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, सूखा बाढ़ और आंधी जैसी प्राकृतिक आपदा से फसलों को होने वाले नुकसान से राहत देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की थी मगर किसानों के लिए मध्यप्रदेश में एक बार फिर यह बीमा योजना मजाक बनकर सामने आई है. 18 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 लाख किसानों को बीमा राशि का वितरण एक भव्य समारोह में किया था कई किसान ऐसे हैं जिनको बीमा राशि के नाम पर ₹7 से लेकर ₹100 तक ही मिले हैं. हालांकि सरकार ने अब फिर से बीमा राशि के निर्धारण की बात कही है ।

सिर पर है कर्ज
आगर के समीप ग्राम तोलाखेड़ी के सभी किसान बुरे दौर से गुजर रहे हैं. 14 बीघा जमीन पर खेती करने वाले किसान अंतर सिंह इस बात से परेशान हैं कि आखिर उनसे चूक कहां हुई है. बीमा प्रीमियम की राशि भी पूरी जमा की थी. खेती में नुकसान भी भरपूर हुआ, दो लाख रुपए का बैंक और साहूकारी कर्ज भी सिर पर है. पटवारी ने सर्वे भी किया, लेकिन बीमा की राशि 18 रुपए खाते में आई है. अब 18 रुपए में अंतर सिंह या तो अपने बच्चों को पढ़ाएं या कर्ज को उतारे या अगली फसल के लिए बीज और खाद की व्यवस्था करें. इन सभी त्रुटियों के लिए किसान अंतर सिंह सरकारी सिस्टम को दोषी मान रहे हैं.

प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान किसानों को मिली नाम मात्र की बीमा राशि से संतुष्ट नहीं है. सरकार ने बीमा कंपनियों को राशि का फिर से निर्धारण करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही मौजूदा सोयाबीन फसल के नुकसान के बदले में मुआवजा देने का भी ऐलान किया है.

7 रुपए में बच्चे का बिस्किट भी नहीं आता

परिवार के 8 सदस्यों के साथ आगर मालवा जिले ग्राम तोलाखेड़ी में रहने वाले किसान भगवान सिंह अपने सिर पर चढ़े करीब 3 लाख रुपए के कर्ज को उतारने के लिए लगभग नष्ट हो चुकी सोयाबीन को समेटने की कोशिश कर रहे हैं. साल 2019 में भी ज्यादा बारिश के चलते सोयाबीन की फसल नष्ट हो गई थी. बैंक से बीमा इस उम्मीद में कराया था कि अगर फसल में नुकसान हुआ तो बीमें की राशि से भरपाई हो जाएगी. सरकार ने जैसे ही बीमा राशि वितरण का ऐलान किया. किसान भगवान सिंह की आंखों में उम्मीदों के सितारे चमकने लगे लेकिन जब सूची में नाम देखा तो भगवान सिंह के हिस्से में बीमा की राशि के केवल 7 रुपए ही आए थे. किसान भगवान सिंह ने बताया कि इस 7 रुपए में तो बच्चे के लिए एक बिस्किट का पैकेट भी नहीं आयेगा. वह भी इसके लिए सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारी मान रहे हैं.

क्या है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2 फ़ीसदी प्रीमियम और रबी की फसल के लिए 1.5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है. वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए किसानों को 5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है. सरकारी व्यवस्था में फसल नुकसानी का आकलन के लिए पटवारी और कृषि विभाग के अधिकारी मिलकर किसानों के खेत पर जाकर नुकसान का आकलन करते हैं. फसल को होने वाले नुकसान का पैमाना खेत या गांव ना होकर पटवारी हल्का है. जिससे कई गांव के किसान योजना का लाभ नहीं उठा पाते हैं.

बता दें आने वाले दिनों में प्रदेश के 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. ऐसे में किसानों के मामले को लेकर दोनों प्रमुख दल कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं. मोदी सरकार ने कृषि संबंधी विधेयक का हालांकि मध्य प्रदेश पर कोई असर नहीं दिखाई नही दे रहा है ना पक्ष में ना विपक्ष में. लेकिन चुनाव की रणनीति में किसान कहीं ना कहीं आ ही जाता है तो अब फसल बीमा योजना के नाम पर ही सही दोनों दल एक दूसरे को किसान हितेषी बताने में लगे है।

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