नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आज का युवा
“ मै शायद बच नहीं पाउँगा , तुम वापस जाकर सबको बताना कि मै आखरी दम तक भारत की आज़ादी के लिए लड़ता रहा. वो जंग-ए-आज़ादी जारी रखें , हिन्दुस्तान ज़रूर आज़ाद होगा ’’. ये अंतिम शब्द थे भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के उस महान क्रांतिकारी के , जिसको लोगों ने ख़ुद ‘ नेताजी ’ की उपाधि दी थी. जिसके नेतृत्व में आज़ाद हिन्द फ़ौज ने एक एक करके कई भारतीय राज्यों को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी दिलाई. वो वीर सुभाष चन्द्र बोसे ही थे , जिनके जन्मदिन को आज भारत पराक्रम दिवस के रूप में मनाता है. नेताजी का जीवन और उनके विचार कई मायनों युवाओं के लिए प्रेरणादायी हो सकते है. उनमे असीमित साहस था तो आपार धैर्य भी था. वे मृदुभाषी तो थे , लेकिन समय आने पर उनके क्रोध की कोई समता न थी. उन्होंने अपना पूरा जीवन मात्रभूमि को समर्पित कर दिया.
बोस ने 15 वर्ष की आयु में ही विवेकानंद साहित्य का पुर्णतः अध्ययन कर लिया था , वे उन्हें अपना आदर्श मानते थे. इसके अलावा स्कूल के प्रिंसिपल बेनीमाधव दास का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा. उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता प्रदान करने के स्वप्न उन्होंने बाल्यकाल से ही संजो लिया था. जिसके लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया. लेकिन 49वी बंगाल रेजिमेंट से ये आँखों में खराबी की वजह से अयोग्य करार दे दिया गया. उन्होंने हार नहीं मानी और 1 सितम्बर 1942 को आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की , जिसे छोड़कर विश्व इतिहास में ऐसा कोई दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ पैंतीस हज़ार से ज्यादा युद्धबंधियों ने संगठित होकर किसी देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष किया हो. आज का युवा कई कारणों की वजह से इतना आत्मकेंद्रित हो गया है कि परिस्थितियाँ ज़रा भी विपरीत हो जाए तो वो हार मान जाता है. नेताजी अपने जीवन में कुल 11 बार जेल की यात्रा पर गये थे. फिर भी यह उनका संयम और आत्मविश्वास ही था जिसने उन्हें बार बकार स्वतंत्रता आन्दोलन की और अग्रसर किया. संगठन में विरोधाभास रखने वाले लोगों के साथ रहकर कार्य करना भी नेताजी से सीखा जा सकता है.
1930 के दशक में जब उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष रूप में चुना गया , तब कई कांग्रेसी नेता उनकी कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे. इसके बावजूद उन्होंने योजना आयोग और विज्ञान परिषद् की स्थापना करवाई. नेताजी इतने सशक्त नेत्रत्वकर्ता थे कि उनसे प्रभावित होकर कई लोगों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान दिया. भारत के अलावा जर्मनी , जापान , कोरिया , इटली , आयरलैंड चीन आदि कई देशों में उनके चाहने वाले थे. आज भी जापान में नेताजी की पुण्यतिथि 18 अगस्त को प्रति वर्ष धूम धाम से मनाई जाती है. बोस ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ के समर्थक थे , जबकि वीर सावरकर ‘ हिन्दू राष्ट्रवाद ’ के. इसी वजह से दोनों के बीच कई मतभेद भी हुए , मगर मनभेद कभी नहीं हुआ. सावरकर स्वयं नेताजी से बहुत प्रभावित थे. आज़ादी के उपरान्त जब वीर सावरकर ने युवाओं के लिए एक सम्मलेन का आयोजन किया , तक अध्यक्ष के आसन पर नेताजी का चित्र स्थापित किया , और इस प्रकार एक क्रांतिकारी ने दूजे को श्रद्धा सुमन अर्पित किये. उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा आज भी हम गर्व के साथ रास्ट्रीय पर्वों पर लगाते है. नेताजी के विचार आज भी इतने प्रासंगिक है जितने तब हुआ करते थे , बस ज़रुरत है उन्हें अपने जीवन में उतारने की और उनके व्यक्तित्व से प्रेरित होकर राष्ट्रहित की और अग्रसर होने की.
लेखक– प्रथमेश व्यास (मीडिया विद्यार्थी)
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