कहा हो तुम, कहा चले गए हो.
तुम तो जेसे इसमें हो ही नही,
अदाए तो है,लेकिन तुम सा कोई नही।
लगता सबकुछ तुम सा ही है,
पर “दिल और रूह” तो वो है ही नही।।
इसमें तो उस जेसा कोई जिक्र ही नही है ,
मेरे हालात क्या है? इस बात की कोई फ़िक्र ही नही है ।
सपनो में तुम से कह रहा, इतने जरुरी बन गए हो ,
कहा हो तुम कहा चले गए हो।।
नितेश सूर्यवंशी
(लेखक, शाजापुर)