मामा के प्रदेश में बैलों की जगह भांजिया खेतो में जोत रही डोर.
आर्थिक तंगी से परेशान पिता का हाथ बटाने बेटियों ने छोड़ दी पढ़ाई, बैल नही खरीद पाए तो डोर चलाने के लिए बेटियां बनी बैल
आगर-मालवा, विजय बागड़ी.
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, क्योंकि पढ़ेंगी बेटियां तभी तो बढ़ेंगी बेटियां’ जैसी बाते सरकार द्वारा कही जाती है लेकिन धरातल पर इन बातों का अमल होता हुआ कम ही दिखाई देता है। हालात यह है कि प्रदेश की शिवराज सरकार में बेटियों की दुर्दशा हो रही है। बेटियों के लिए लाई गई योजनाएं असल मे उन तक पहुंच ही नही पाती है। जिसके कारण न तो बेटियां पढ़ पाती है और न ही आगे बढ़ पाती है।
जिले में दो बेटियों तथा एक मजबूर किसान पिता की ऐसी तस्वीर सामने आई है जो दिल को झकझोर करने वाली है। जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूरी पर स्थित ग्राम मथुराखेड़ी में दो बेटियों ने गरीब किसान पिता का घर चलाने के लिए ऐसा हाथ बढ़ाया की उनकी पढ़ाई ही छूट गई। हम बात कर रहे है इस गांव के किसान कुमेर सिंह तथा इनकी बेटियां जमना तथा मधु की।
बता दे कि कुमेरसिंह के पास अपने गांव में 2 बीघा कृषि भूमि है इतनी भूमि पर होने वाली फसल की आवक से केवल कुमेर सिंह के घर दो समय का खाना बन सकता है न कि उसकी व उसकी बेटियों की जरूरतें पूरी हो सकती है। ऐसे में पिता का खर्चा कम करने व काम मे हाथ बंटाने के लिए कुमेर सिंह की दोनो बेटियों ने पढ़ाई छोड़ दी और खेतों में पिता का हाथ बंटाने लगी। परेशानी यही खत्म नही हुई खेतो में फसल बुआई के बाद खरपतवार को नष्ट करने के लिए जब डोर चलाने वाले बैल खरीदने के रुपए नही मिले तो कुमेरसिंह की दोनो बेटियां बैल बन गई। मजबूर किसान की यह स्थिति देख गांव वालो के चेहरे भी रुहांसे हो जाते है। ऐसा नही है कि जिम्मेदारों को कुमेरसिंह की स्थिति के बारे में पता न हो सब कुछ जानकर भी जिम्मेदारों द्वारा उसकी किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नही की गई।
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– तीन महीने पहले घर टूटा तो ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर बनवाया—
कुमेरसिंह को परेशानियों ने हर तरफ से घेर रखा है। तीन महीने पूर्व आंधी-तूफान के चलते कुमेरसिंह का घर ढह गया था। नया घर बनाने के लिए उसके पास फूटी पाई तक नही थी। बिना छत के घर मे दो बेटियों व पत्नी के साथ रहना काफी मुश्किल हो गया था कुमेर सिंह ने पंचायत से मदद भी मांगी। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने के लिए जिम्मेदारों के चक्कर काटे लेकिन कही से सहयोग नही मिला ऐसे में गांव के ही लोगो ने कुमेर सिंह की मदद करने की ठानी। गांव के सभी लोगो ने मिलकर चंदा एकत्रित किया और कुमेरसिंह के टूटे हुवे मकान का काम आरम्भ करवाया। वर्तमान में कुमेरसिंह के मकान का काम चल रहा है।
–– बेटियों ने कहा पढ़ेंगे तो घर कैसे चलेगा-
कुमेरसिंह का खेतो में हाथ बंटाने वाली बड़ी बेटी जमना 18 वर्ष की है तथा छोटी बेटी 16 वर्ष की है। जमना से बात की गई तो उसने बताया कि पढ़ने की इच्छा थी गांव में ही 8वी तक पढ़ाई की, उसके बाद पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ता है ऐसे में न तो बाहर जाकर पढ़ाई के लिए आर्थिक रूप से मजबूत थे और न ही पिता को इस हालत में छोड़कर जाने को। ऐसे में पढ़ाई को छोड़कर पिता का हाथ बटाना ही जरूरी समझा। जमना ने बताया कि खेत मे खरपतवार निकालने के लिए डोर में हम बहनों को जुतना अच्छा नही लगता लेकिन हमारी मजबूरी है। बैल खरीदने के पैसे नही है बैल खरीद ले तो उन्हें रखने के लिए जगह नही है साथ ही बैल के रखरखाव में होने वाले खर्च को वहन करना भी उनके लिए टेडी खीर है। बता दे कि जमना की छोटी बहन महज 16 साल की है उसने भी पिता की मदद के लिए पढ़ना छोड़ दिया।
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कुमेरसिंह ने बताया कि मजबूरी है बैल कहा से लाए इसलिए खेतो से खरपतवार को निकालने के लिए बैलों की जगह बेटीयों को लगा दिया। हमारी किसी तरह सरपंच या सचिव ने आर्थिक सहायता नही की है। मकान भी टूट गया था जिसे ग्रमीणों ने चंदा इकट्ठा करके बनवाया।
ग्रामीण कमलसिंह ने बताया कुमेरसिंह काफी गरीब है 2 बीघा जमीन के सहारे घर चलता है। इनकी बेटियां इनका सहयोग करती है। सरकारी तौर पर भी इनकी मदद के लिए कोई आगे नही आया। बेटियों पिता का हाथ बटाने के लिए ही बेटियों ने पढ़ाई छोड़ी है। वही इनका घर भी कुछ दिनों पहले ढह गया था ग्रामीणों ने सहयोग कर इनका नया घर बनवाया है।