राम जन्मभूमि आंदोलन में डॉ.मलैया की है महत्वपूर्ण भूमिका

दमोह। यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राम जन्मभूमि आंदोलन में दमोह की बहू डॉ सुधा मलैया का महत्वपूर्ण योगदान है. इसी योगदान के कारण अयोध्या में आयोजित 5 अगस्त को भूमि पूजन के कार्यक्रम में वे कला इतिहासज्ञ के रूप में आमंत्रित की गई थी.

जुलाई 1992 में विश्व हिंदू परिषद के द्वारा गठित हिस्टोरियंस फॉर्म की सदस्य के रूप में प्रथम बार अयोध्या गई थी जब 4.74 एकड़ भूमि के समतलीकरण के दौरान प्राचीन राम मंदिर के 40 अवशेष मिले थे. अवशेष पर्याप्त थे बताने के लिए कि वहां राम मंदिर को तोड़कर बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने 1526 में मस्जिद बनवाई थी.

1950 से उच्च न्यायालय में विशेष बेंच के समक्ष चल रहे वाद में यही मुख्य बात थी कि यह प्रमाणित किया जाए कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी.

2 दिसंबर से 6 दिसंबर 1992 तक डॉ मलैया अयोध्या में अकेली इतिहासकार के रूप में मौजूद थी। उस दिन जो साक्ष्य वास्तु अवशेष ढांचे के मलबे में से मिले वे सारे राम जन्मभूमि मंदिर के थे. उसमें सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य था 5 फुट लंबा और 20 इंच चौड़ा पत्थर पर उत्कीर्णित उत्कृष्ट संस्कृत और नागरी लिपि में प्राप्त शिलालेख था. शिलालेख पुरातत्व में बहुत महत्वपूर्ण होता है.

इतिहास की अनेक गुत्थियां अभिलेखों से ही सुलझी हैं.इस शिलालेख को अभिलेख विदों से पढ़वा कर देश के सामने 19 दिसंबर को प्रकाश में लाया गया और बाद में न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. इनके आधार पर न्यायालय ने अधिकृत रूप से शिलालेख का पाठ करवाया और वह महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, जो बाद में न्यायालय के निर्णय में एक महत्वपूर्ण आधार बना. इस पूरे प्रकरण में महत्वपूर्ण बात यह थी यदि 13 दिसंबर को कर्फ्यू के दौरान जब देखते ही गोली मारने के ऑर्डर थे उस हालात में डॉ मलैया यदि अयोध्या जाकर दोबारा फोटो खींच कर न लाती तो आज साक्ष्य देश के सम्मुख न होते, क्योंकि आज भी वह अधिकृत रूप से सामान्य जनता के लिए देखने हेतु सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. इतना महत्वपूर्ण साक्ष्य जनता के समक्ष आने से रह जाता.यही डॉ सुधा मलैया का योगदान है.

उसके बाद भी वह राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी रहीं, राम जन्मभूमि पर अपने लेखों को प्रकाशित किया तथा सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के पश्चात उन्होंने पत्रिका ओजस्विनी में एक पूरा अंक अयोध्या विशेषांक के रूप में निकाला.


शिलालेख से जानकारी मिलती है कि महाराजाधिराज गोविंद चंद्र के मांडलिक साकेत मंडल के राजा अनयचंद्र मेघ के पुत्र और अल्हण के पौत्र ने यह विशाल मंदिर जो कि प्राचीन राम जन्मभूमि मंदिर था और विष्णु हरि मंदिर के नाम से जाना जाता था का पुनरुद्धार करवाया था. यह वही मंदिर था जो प्रथम सदी में महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था किंतु 10 वीं शताब्दी में महमूद गजनी के आक्रमण के पश्चात 11वीं शताब्दी में सालार मसूद जिसे की महाराजा सुहेलदेव ने पराजित करके मार दिया था उसने राम जन्मभूमि मंदिर पर कुछ क्षति पहुंचाई थी। जिसके कारण अनय चंद्र को यह मंदिर दोबारा बनवाना पड़ा था. यह शिलालेख 12 वीं सदी के पूर्वार्ध में बनाए गए इस मंदिर का शिलान्यास पत्थर है। जिसमें इस वंश की पूरी प्रशस्ति के साथ विष्णु के अवतारों का भी वर्णन है. उस अवतार का भी वर्णन है जिसमें दुष्ट दशानन का वध कर दिया था.

दमोह से शंकर दुबे की रिपोर्ट

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