एक कहानी शन्नो की.. महिलाओं को दे रही आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा, पढ़े पूरी ख़बर दि टेलीग्राम पर..
●पहले उठाती थी तगारी, आज कारीगर बन लोगो के आशीयाने बना रही शन्नो..
●यह है महिला मिस्त्री शन्नो, आत्मनिर्भर होकर खुद कर रही हैं, अपने परिवार का पालन पोषण.
आगर-मालवा..
कहते है कि कोई भी काम मेहनत और लगन से किया जाए तो फिर आपको सफलता अवश्य मिलती हैं। ऐसी कहानी है शन्नो बी की. जिन्होने पहले दिहाड़ी मजदूरी कर तगारी उठाने का कार्य किया। भवन निर्माण करने वाले कारीगर को ईट देने वाली महिला ने लगन, मेहनत से अपने हुनर को निखार कर आज खुद को एक महिला कारगीर (मिस्त्री) के तौर पर तैयार कर लिया है। अब यह ईटे जोड़कर लोगो के आशीयाने बनाने का काम कर रही है। प्रदेश की पहली महिला कारीगर बनी शन्नो बी आगर मालवा जिले के कानड़ की रहने वाली हैं
2004 में पति ने छोडा, बच्चो को पालने के लिए की मजदूरी.
शन्नो की जिंदगी में कई उतर चढ़ाव आए। 2004 में पति ने अनबन की वजह से शन्नो को दो बच्चियो के साथ अकेला छोड़ दिया। अचानक आई इस आपदा से शन्नो ने ही दो बच्चियों के पालन पोषण के लिए मजदूरी करने का फैसला लिया, पहले मिस्त्री के साथ जाकर सिर्फ तगारी देना, ईट उठाने के साथ छोटे-मोटे काम करना रहता था। बच्चो की परेशानी के साथ लाज-लज्जा का ख्याल रख शन्नो दिन रात मेहनत करने में लगी रही,और अब एक मिस्त्री बन चुकी है।
मिस्त्री के साथ सुबह 10 बजे जाकर शाम को 5 बजे घर आना ऐसे में शन्नो को दोहरी जिम्मेदारी को निभाना भी टेढ़ी खीर सा था. सुबह का जल्दी खाना बनाकर काम पर जाकर फिर काम से वापस आने के बाद खाना बनाना, घर का काम करने वाली भूमिका काे बखूबी निभाया।
शन्नो ने धीरे-धीरे मिस्त्री के हुनर को देखकर पहले दीवार पर ईट रखना फिर सँवाल बांधना, कोण मिलना सीखा यह सब धीरे धीरे सीखने के साथ एक दो जगह दीवार का काम शुरू किया मिस्त्री से सीखे हुनर की बदौलत ईट देने वाली शन्नो बाजी आज खुद महिला मिस्त्री बन कर बेहतर शानदार मकान बना रही हैं।
मेहनत कर बच्चों की करवा रही पढाई.
पति से अलग होने के बाद बच्चियों की पढ़ाई पर भी शन्नो ने कोई कोरी कसर नही छोड़ रही हैं। शन्नो की बड़ी लड़की आफ़िया आज 12 वी में अध्यनरत हैं। छोटी लड़की सिमरन 9 वी में अध्यनरत हैं। बच्चियों की हर खुशी का ध्यान रखने वाली शन्नो के मन मे एक मलाल भी हैं कि उसकी क्या गलती थी उसके पति ने उसे छोड़ दिया वह सिर्फ महिला थी यह वजह कुछ और थी।
शन्नो ने बताया कि पुरुषों के साथ तगारी उठाना, ईट देना अन्य काम करना बड़ी मुश्किलों भरा था। लाज-लज्जा के साथ परिवार की इज्ज़त का ध्यान रखना था। हर कदम पर हिम्मत के साथ कदम रखा तो आज मजदूरी की जगह मिस्त्री का काम कर रही हु। मजदूरी में मेहनताना भी कम मिलता था आज मिस्त्री (कारीगर) बनने के बाद मेहनताना भी अच्छा मिलता हैं। छोटे से परिवार के बीच आज हसीं खुशी जीवन यापन हो रहा हैं।
शन्नो भी न सिर्फ लोगो के आशीयाने बना रही है, बल्की दोनो बच्चियों को पढाने के साथ-साथ अपने ही हाथो से भोजन भी तैयार करके खिलाती है। आज यह जिलें ही नहीं बल्की पूरे प्रदेश की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्राेत बनी हुई है।