मध्य प्रदेश की सनातन संस्कृति का पर्याय जबलपुर
जबलपुर क्षेत्रफल और जनसँख्या दोनों के लिहाज़ से मध्य प्रदेश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है. प्रदेश के अन्य महानगरों की तरह यह शहर भी हर रूप से सक्षम और परिपूर्ण है. शिक्षा, स्वास्थ, व्यापार व्यवसाय और उन्नत रहन-सहन के लिए उपयुक्त होने के बाद भी इसकी चर्चा कम ही की जाती है. ये जानना ज़रूरी होगी की मध्य प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद राजधानी बनाने के लिए सबसे पहले जबलपुर का ही नाम प्रस्तावित किया गया था, लेकिन कई कारणों की वजह से जबलपुर को राजधानी न बनाकर प्रदेश की संस्कारधानी का दर्जा दिया गया.
पर्यटकों के लिए जबलपुर एक ऐसा स्थान हो सकता है, जहाँ वे बार बार आना चाहेंगे. 15वी शताब्दी में बना जैन तीर्थ पिसनहारी की मढिया हो या 1100 ई. में राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया मदन महल का किला, रानी दुर्गावती म्यूजियम हो या डुमना नेचर पार्क. सभी इतने मनभावन है कि सालों बाद भी नाम याद आते ही उनकी तस्वीर आँखों के आगे तैरने लग जाए. इस शहर की सुन्द्रता को भव्यता में बदलने का कार्य करती है नर्मदा नदी. जिसके किनारे स्थित भेड़ाघाट में सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों से बनी सुन्द्र संरचनाओं और विक्राल स्वरुप वाले धुआंधार जलप्रपात को देखा जा सकता है. नर्मदा नदी के ही किनारे स्थित एक और प्रसिद्द स्थल है – ग्वारीघाट, जहाँ रोज़ माँ नर्मदा की भव्य संध्या आरती होती है. नर्मदा जयंती के दिन तो शहर की गली-गली में मूर्ति पूजा और हर 50 मीटर पर भंडारे का आयोजन किया जाता है. यहाँ की नवरात्रि के बारे में तो क्या ही कहा जाए. इतनी जीवंत मूर्तियाँ और इतने विचित्र रूप से सुसज्जित पांडाल आप शायद ही कहीं और देख पाएं. मदन महल के किले के पास बैलेंसिंग रॉक है. यह विचित्र रूप से छोटी सी धुरी पर खड़ा विशाल पत्थर कई पर्यटकों और वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित करता है. इसके अलावा यहाँ तिलहरी में 108 फीट ऊँची हनुमान प्रतिमा और कचनार सिटी में 76 फीट ऊँची संगमरमर की शिव प्रतिमा भी यहाँ स्थित है, जिनके दर्शन हेतु दूर दूर से श्रद्धालु आते है. यह तथ्य है की आप जबलपुर में किसी भी जगह पर रहे, दिन में एक न एक बार आपको आरती और भजनों की आवाज़ तो आ ही जाएगी. यहाँ के अधिकतर पर्यटन स्थल धार्मिक ही है, इसलिए जबलपुर को मध्य प्रदेश आस्था का केंद्र भी कहा जाता है.
खान पान की बात की जाए तो यहाँ की गुड़ की जलेबी पुरे देश में प्रसिद्द है. इसके अलावा यहाँ का पापड़ी चाट भी बहुत स्वादिष्ट होता है, जिसे पारंपरिक ढंग से बनाया जाता है और पत्ते से बने हुए दोने में परोसा जाता है. यहाँ आपको बड़ी बड़ी इमारतों के साथ साथ छोटी दुकानों में राह निहारते दुकानदार अपनी ओर आकर्षित करेंगे. सुबह 5 बजे कड़कती ठण्ड में घर घर जाकर मुस्कुराते – गीत गाते अखबार बांटने वाले इस शहर की जिंदादिली के उदाहरण है तो जबलपुर वासियों के स्वभाव की शालीनता में यहाँ की प्रसिद्द छेना रबड़ी से भी ज्यादा मिठास जो त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे कहकर हर बाहरी व्यक्ति को अपना बना लेती है. इस शहर के विकास की गति आधारभूत संरचना के लिहाज़ से थोड़ी धीमी ज़रूर है लेकिन लोक संस्कृति, सौहार्द्र, धार्मिकता आदि के मामले में जबलपुर एक उम्दा उदाहरण है.