अनसुनी दास्तान: आगर में पिता की हत्या का बदला लेकर शहीद हुआ था मजहर अली, 1857 की क्रांति के दौरान कानपुर में क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने की थी हिंदुस्तानी सैनिक सफदर अली की निर्मम हत्या, चांदमारी के दौरान गोली मारकर उतार दिया पिता के हत्यारे के बेटे ए.एच.एस नील को मौत के घाट

अनसुनी दास्तान: आगर में पिता की हत्या का बदला लेकर शहीद हुआ था मजहर अली, 1857 की क्रांति के दौरान कानपुर में क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने की थी हिंदुस्तानी सैनिक सफदर अली की निर्मम हत्या,  चांदमारी के दौरान गोली मारकर उतार दिया पिता के हत्यारे के बेटे ए.एच.एस नील को मौत के घाट

विजय बागड़ी, आगर-मालवा। बाप की मौत का बदला बेटा ले ऐसा तो आपने कई फिल्मी कहानियों में देखा होगा और असल कहानियों में भी उधमसिंह जैसे वीर क्रांतिकारी ने जलियांवाला बाग में उनके माता-पिता की हुई हत्या का लंदन जाकर अंग्रेज जनरल डायर को मारकर बदला लिया था लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही अनसुनी कहानी बताने जा रहे हैं जिसको इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया और एक वीर शहीद को शहीद का दर्जा ना मिला और उसे मौत के बाद सिर्फ नाले के किनारे दो गज जगह मिली। घटना आज की नहीं करीब 134 साल पुरानी है और करीब 164 साल पहले इसकी शुरुआत हुई थी, आप आकड़ो में मत उलझिये हम आपको आगर-मालवा से जुड़ी शहीद बाप-बेटे के बलिदान की यह पूरी कहानी बताते है। वर्ष 1857 की क्रांति तो आप सभी ने सुनी होगी उस समय अंग्रेजी सेना के विरुद्ध हिंदुस्तानियों ने मोर्चा खोल दिया था, अंग्रेज के साथ काम करने वाले भारतीय भी उनके खिलाफ थे।

घटना वर्ष 1857 की है कानपुर में अंग्रेज सेना में छोटे पद पर कार्य करने वाले सफदर अली ने अंग्रेजों के अत्याचार और गलत नीतियों से परेशान होकर क्रांति का हिस्सा बनते हुए जनरल व्हीलर की हत्या कर दी थी, घटना बड़ी थी जनरल की हत्या करना उस समय कोई मामूली बात नही हुआ करती थी। ब्रिटिश आर्मी के साथ जो व्यवहार हुआ उसका अंग्रेज बदला लेना चाहते थे। उन्होंने लोगों को चिन्हित करा और सजा देना शुरू कर दी और सजा देने का काम उस समय कर रहा था तत्कालीन जनरल नील। वह इतना क्रूर और दमनकारी था कि वह भारतीयों को तड़पाकर मौत देने से बिल्कुल भी नही कतराता था। कानपुर में आज भी जनरल नील जहां भारतीयों पर अत्याचार करते थे वह बूढ़ा बरगद मौजूद है, जनरल नील ने सफदर अली को भी वहां प्रताड़नाएं दी और फिर फाँसी पर लटका दिया लेकिन मरने से पहले सफदर अली ने वहां मौजूद लोगों से कहा था कि मेरे साथ हुए इस अत्याचार से मेरे बेटे को अवगत करा देना और उससे कहना की वह जनरल नील या इसके वंशजो से मेरी मौत का बदला ले। जब सफदर अली की मौत हुई उस समय उनका बेटा मजहर अली एक साल का था और रोहतक (हरियाणा) में परिवार के साथ था।

सफदर अली का बेटा मजहर अली बड़ा हुआ और सेंट्रल इंडिया हॉर्स रेजीमेंट आगर-मालवा में भर्ती हुआ अब इसे इत्तिफाक कहे या कुछ और क्योंकि जब मजहर अली आगर-मालवा में भर्ती हुआ उस समय उसी दमनकारी जनरल नील जिसने सफदर अली की हत्या की थी उसका बेटा ए.एच.एस नील यहां अधिकारी के पद पर पदस्थ था। बाप की मौत का बदला लेने की आग तो मजहर अली के अंदर जल ही रही थी लेकिन बस वह मौके की तलाश कर रहा था। उसने ए.एच.एस नील की काफी सेवा की और उसका खास बनकर रहने लगा। पिता की मौत के करीब 30 साल बाद 12 मार्च, 1887 के दिन चांदमारी के दौरान मजहर अली ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए जनरल नील के बेटे ए.एच.एस नील को गोली मारकर उसे मौत के घाट उतार दिया। घटना के बाद मजहर अली को हिरासत में लिया गया और तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी सर लेफन ग्रिफिन के आदेश पर मजहर अली का कोर्ट मार्शल हुआ जिसके बाद 14 मार्च, 1887 को मजहर अली को आगर-मालवा के छावनी क्षेत्र में फांसी पर लटकाया गया लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा यह फरमान जारी किया गया कि मजहर अली को उनके छावनी क्षेत्र में दफन वह नहीं करने देंगे जिसके बाद छावनी के बाहर गवलीपुरा की तरफ एक नाले के पास इस महान शहीद को दफन किया गया था। यह जानकारी शायद आप लोगों को आज से पहले बिल्कुल पता नहीं होगी क्योंकि द टेलिग्राम डॉट इन की टीम ने काफी अपने स्तर पर पड़ताल की और तथ्यों को खंगाला उसके बाद ही हम आप तक एक शहीद बाप-बेटे की शहादत की दास्तान लेकर आए हैं।

~आगर उस समय कागजो में अगर

ब्रिटिश कार्यकाल के दौरान आगर-मालवा को वेस्टर्न मालवा का एक शहर अगर के नाम से जाना जाता था, हमे ब्रिटिश कार्यकाल के जो दस्तावेज मिले है उनमें कही भी आगर-मालवा नाम दर्ज नही है। हर जगह अगर ही लिखा गया है और अगर की जो स्पेलिंग हम अंग्रेजी में लिखते है उससे अलग स्पेलिंग ब्रिटिश डॉक्यूमेंट में अगर की लिखी हुई है। चांदमारी की जिस घटना का इस कहानी में उल्लेख है वह भी शहर से ज्यादा दूर नही है, नरवल रोड़ पर नई कर्षि उपज मंडी के पास जो तलाई बनी हुई है उसके ऊपर जो पहाड़ी हिस्सा है इसी को चांदमारी कहा जाता था और यही पर अंग्रेज सैनिक निशाना लगाने का अभ्यास करते थे। वर्तमान में भी बुजुर्ग लोगों से अगर चांदमारी के बारे में पूछा जाए तो वह भी सही पता बता देंगे।

~टूटी हालात में है कब्र

शहीद मजहर अली को गवलीपुरा के पास जिला जेल के सामने एक नाले के पास बरगद के पेड़ के नीचे दफन किया गया था, वहां उनकी कब्र के ऊपर मजार बनाई गई लेकिन देखरेख के आभाव में अब वह भी क्षतिग्रस्त होने लगी है। शासन को इस और ध्यान देना चाहिए और वहां उनकी कब्र पर शहीद स्मारक बनाकर उनके इतिहास का उल्लेख करना चाहिए।

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