दमोह विधानसभा की सीट तो नहीं लेकिन कोरोना संक्रमण फैलाने का दाग भाजपा को मिला
भितरघात के शिकार हुए भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी, मलैया के वार्ड से नहीं मिले वोट
सत्ताधारी पार्टी का उपचुनाव में एक सीट भी न जीत पाना कहीं बदलाव के संकेत तो नहीं
दमोह उपचुनाव में कॉंग्रेस की जीत का श्रेय कमलनाथ को जाता है
विजया पाठक,एडिटर जगत विजन
आखिरकार भारतीय जनता पार्टी दमोह विधानसभा की सीट बचा पाने में कामयाब नहीं हुई और भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन से चुनाव हार गए। जिस सीट पर चुनाव जीतने के लिए भाजपा नेताओं ने साम,दाम,दंड, भेद जैसे तमाम हथकंडे अपना लिये बावजूद चुनाव परिणाम विपरीत आए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद सरकार के प्रमुख मंत्रियों को चुनाव जीताने में झोंक दिया, लेकिन वो भी जीत न दिला सके। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने अपने पार्टी के मंत्रियों से ज्यादा कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया खेमे के तीनों मंत्रियों पर ज्यादा उम्मीद जताई और परिणाम यह रहा कि भाजपा चुनाव हार गई।
एक बार फिर नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह विफल चुनाव प्रभारी साबित हुए। उनकी विफलता सबूत तो उसी दिन मिल गया था जिस दिन नगरीय प्रशासन विभाग की गाड़ी में दमोह की जनता को बांटने के लिए करोड़ों रुपए रखे हुए थे। इसमें कोई दोराय नहीं कि राहुल लोधी भितरघात का शिकार नहीं हुए। क्योंकि प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री जयंत मलैया के वार्ड से भी भाजपा प्रत्याशी को वोट नहीं मिले। 2 मई 2021 रविवार का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद निराशाजनक रहा। निराशा का कारण भी है क्योंकि भाजपा नेताओं ने जिस दम खम के साथ बंगाल में भगवा झंडा लहराने की घोषणा की थी वो असफल साबित हुआ। चुनाव में हार जीत तो लगी रहती है, लेकिन इस हार से भाजपा को एक बात समझ लेना चाहिए कि आने वाले नगरीय निकाय या विधानसभा चुनाव में उन्हें एक नई रणनीति अपनानी होगी, क्योंकि इस जीत के बाद विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी के हौसले बुलंद हो गए और वो मिशन 2023 पर पूरी तरह फोकस करने को तैयार है।
दमोह में कांग्रेस की जीत का निश्चित तौर पर श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की दूरदर्शी सोच को जाता है। जिन्होंने प्रदेश से अपनी सत्ता जाने के बाद भी प्रदेश की जनता की सेवा करने का विचार मन से नहीं त्यागा और पूरी शिद्दत के साथ आज भी जुटे हुए है। कमलनाथ की यह मेहनत का परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो दमोह सीट पर भाजपा की हार 2023 विधानसभा चुनाव के लिए शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि जिस जोश खरोश के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद पर चौथे कार्यकाल की शपथ ली थी, उस दौरान जनता को मुख्यमंत्री से बहुत उम्मीदें थी। उम्मीदें खासतौर पर कोरोना से उबरने को लेकर।
लेकिन सरकार ने जिस तरह से जनता की लाशों पर बैठकर दमोह में चुनाव कराने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने जनता को कहीं न कहीं आहत किया है। प्रदेश में हर तरफ मौत का तांडव मचा हुआ है और सरकार चुनाव कराने में व्यस्त है। यह बात प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के दिल और दिमाग में घर कर गई है और अब जनता भाजपा को माफ नहीं करेगी। आज यदि प्रदेश में यह कोरोना के यह हालात बने हैं तो इसकी जिम्मेदार सिर्फ नेता बिरादरी है। लॉकडाउन के नाम पर जनता को घरों में कैद कर खुद राजनेता सड़कों पर रैलियां कर रहे थे। जनता रोजी-रोटी के लिए मोहताज हो रही है और राजनेता उनके दिलों में जल रही आग से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे है। भले ही मुख्यमंत्री दिन रात एक करके कोरोना संक्रमण की व्यवस्थाओं में जुटे हुए हो लेकिन अंततः यह उन्हें स्वीकारना होगा कि आज प्रदेश में संक्रमण को इस स्तर तक पहुंचाने में उपचुनाव की बड़ी भूमिका रही है।