INDEPENDENCE DAY:आजाद भारत में भी 659 दिन तक नवाबों का “गुलाम था भोपाल”, भारत माता की जय पर लगा हुआ था प्रतिबंध

INDEPENDENCE DAY:आजाद भारत में भी 659 दिन तक नवाबों का “गुलाम था भोपाल”, भारत माता की जय पर लगा हुआ था प्रतिबंध

भोपाल। अब तक आप लोगों ने सुना होगा कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था लेकिन आजादी के बावजूद भी भोपाल अपने नवाब का गुलाम था. इतना ही नही आजाद भारत में भी यहां “भारत माता की जय” नारा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. नवाब की आर्मी के सिपाही स्वतंत्रता की बात करने वालों को हिरासत में ले लेते थे. 15 अगस्त 1947 से लगातार 01 जून 1949 तक यानी 659 दिन भोपाल के नागरिक अंग्रेजों के बाद नवाब के गुलाम रहे.

भोपाल रियासत को भारत गणराज्य में शामिल करने में लगभग दो साल का समय इसलिए लगा क्योंकि, भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खाॅं इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहता थे. हैदराबाद निजाम उन्हें भारत छोड़कर पाकिस्तान में विलय के लिए प्रेरित कर रहा था जो कि भौगोलिक दृष्टी से असंभव था. भारत को आजाद हुए इतना समय होने के बावजूद भी भोपाल रियासत का विलय न होने से जनता में भारी आक्रोश था जो विलीनीकरण आन्दोलन में परिवर्तित हो गया, जिसने आगे जाकर उग्र रूप ले लिया.

भोपाल रियासत के भारत संघ में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आन्दोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केन्द्र रायसेन जिला था. रायसेन में ही उद्धवदास मेहता, बालमुकन्द, जमना प्रसाद, लालसिंह ने विलीनिकरण आन्दोलन को चलाने के लिए जनवरी-फरवरी 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की थी. रायसेन के साथ ही सीहोर से भी आंदोलनकारी गतिविधियाॅं चलाई गई. नवाबी शासन ने आजादी के लिए चल रहे आंदोलन को दबाने का पूरा प्रयास किया और आन्दोलनकारियों पर लाठिया-गोलियां चलवाई गई.

भोपाल की नई पीढ़ी के चुनिंदा लोगों को ही यह जानकारी होगी कि भोपाल रियासत के विलीनीकरण मेें रायसेन जिले के ग्राम बोरास में 4 युवा शहीद हुए थे और चारों शहीद 30 साल से कम उम्र के थे. शहीदों की उम्र को देखकर उस वक्त युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अनुमान लगाया जा सकता है. शहीद होने वालों में श्रीधनसिंह उम्र 25 वर्ष, मंगलसिंह 30 वर्ष, विशाल सिंह 25 वर्ष और एक 16 वर्षीय किशोर मा. छोटेलाल शामिल थे. इन शहीदों की स्मृृति में उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर 14 जनवरी 1984 में शहीद स्मारक स्थापित किया गया है. नर्मदा के साथ-साथ बोरास का यह शहीद स्मारक भी उतना ही पावन और श्रृद्धा का केन्द्र है. प्रतिवर्ष यहां 14 जनवरी को विशाल मेला आयोजित होता आ रहा है.

14 जनवरी 1949 को उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास के नर्मदा तट पर विलीनीकरण आन्दोलन को लेकर विशाल सभा चल रही थी. सभा को चारों ओर से भारी पुलिस बल ने घेर रखा था. सभा में आने वालों के पास जो लाठियां और डण्डे थे उन्हें पुलिस ने रखवा लिया था. विलीनीकरण आन्दोलन के सभी बड़े नेताओं को पहले ही बन्दी बना लिया गया था. बोरास में 14 जनवरी को तिरंगा झण्डा फहराया जाना था. आन्दोलन के सभी बड़े नेतओं की गैर मौजूदगी को देखते हुएं बैजनाथ गुप्ता आगे आए और उन्होंने तिरंगा झण्डा फहराया. तिरंगा फहराते ही बोरास का नर्मदा तट भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारों से गूंज उठा. पुलिस के मुखिया ने कहा जो विलीनीकरण के नारे लगाएगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा. उस दरोगा की यह धमकी सुनते ही एक 16 साल का किशोर छोटेलाल हाथ में तिरंगा लेकर आगे आया और उसने भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारा लगाया. पुलिस ने छोटेलाल पर गोलियां चलाई और वह गिरता इससे पहले धनसिंह नामक युवक ने तिरंगा थाम लिया, धनसिंह पर भी गोलिया चलाई गई, फिर मगलसिंह पर और विशाल सिंह पर गोलियां चलाई गईं लेकिन किसी ने भी तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया और ये चारों युवा शहीद हो गए लेकिन उन्होंने तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया. इस गोली कांड में कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए. बोरास में आयोजित विलीनीकरण आंदोलन की सभा में होशंगाबाद, सीहोर से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे.

बोरास में 16 जनवरी को चारों शहीदों की विशाल शव यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों लोगों ने अश्रुपूरित श्रृृद्धांजली के साथ विलीनीकरण आन्दोलन के इन शहिदों को विदा किया. अंतिम विदाई के समय बोरास का नर्मदा तट शहीद अमरे रहे और भारत माता की जय के नारो से आसमान गुंजायमान हो उठा. बोरास के गोली कांड की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को मिलते ही उन्होंने श्री बीपी मेनन को भोपाल भेजा था. भोपाल रियासत का 01 जून 1949 को भारत गणराज्य में विलय हो गया और भारत की आजादी के 659 दिन बाद भोपाल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा झण्डा फहाराया गया.

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