मानवता के लिए मानवीयता: विश्व मानवीय दिवस पर समर्पित

महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला, अब्राहिम लिंकन और प्रिंसेस डायना के बीच में क्या समानताएं हैं? जवाब है की इन सभी विश्व प्रसिद्ध हस्तियों को पिरोने वाला धागा एक ही है – मानवीयता, इंसानियत। जहां महात्मा गांधी ने दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और बताया की बड़ी से बड़ी लड़ाई अहिंसा के माध्यम से लड़ी और जीती जा सकती है, वहीं दूसरी ओर नेल्सन मंडेला इसी अहिंसा को हथियार बनाकर नस्लीय अलगाव को खत्म करने के लिए और अपने देशवासियों को सालों की गुलामी से आज़ादी दिलाने के लिए प्रयासरत रहे। जहां अमेरिका के सर्व प्रथम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित कर प्रत्येक व्यक्ति के समान अधिकारों की लड़ाई लड़ी, वही मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में अश्वेत लोगों के साथ रंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के ख़िलाफ़ और मानव अधिकारों की मुहिम चलाते हुए अपनी जान गंवाई। मदर टेरेसा ने अपना देश छोड़ भारत में आकर अनाथ, कुपोषित, बीमार बच्चों और लोगों की सहायता में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। प्रिंसेस डायना ने, जिन्हें प्यार से लोग ‘लेडी डी’ भी कहते थे, सब कुछ होते हुए भी अपना पूरा जीवन जरूरतमंदों और असहाय लोगों की मदद करने के लिए न्योछावर कर दिया।

इन लोगों की मानवीयता, संवेदनशीलता, त्याग और समर्पण की भावना ही है, की इनके मरणोपरांत पूरे विश्व में शोक मनाया गया और उन्हें आज भी याद किया जाता है और उनके उदाहरण दिए जाते हैं। नॉर्मन बोरलॉग, हैरियट टुबमैन, ऑस्कर शिंडलर, माइकल जैक्सन, एंजलीना जोली जैसे अनेक ऐसे चर्चित चेहरे हैं जो अपने – अपने समय में मानवीय कार्यों से जुड़े रहे हैं। पर अनेकों ऐसे नाम भी हैं जिनके चेहरे तो जाने-माने नहीं है पर उन्होंने अपने कामों से अपनी एक अलग पहचान बनाई है और यह लिस्ट काफी लंबी है।

मानवीयता क्या है? मानवीयता वह गुण है जो आपको जीव जंतुओं की श्रेणी से अलग करता है।

यह एक एहसास है, भावना है, जो आपको दूसरों की पीड़ा के प्रति संवेदनशील बनाता है।
जैसे कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर का एक बहुचर्चित कथन है -“जीवन का सबसे स्थायी और ज़रूरी सवाल है, आप दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं ?” वैसे ही मदर टेरेसा का मानना था की “यदि आप सौ लोगों को नहीं खिला सकते हैं, तो सिर्फ एक को खिलाएं।” यानी भले ही आप एक व्यक्ति की मदद करें, लेकिन दूसरों के काम आना या उनकी सहायता करना ज़रूरी है। हम सिर्फ यह सोचते रह जाते हैं कि सिर्फ मेरे करने से क्या फर्क पड़ेगा? मैं अकेले कितना बदलाव ला सकता हूं? पर यह सोचिए कि यदि आप किसी के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हैं या उसकी मदद करते हैं तो आपको देखकर कम से कम एक व्यक्ति ज़रूर प्रभावित होगा। जब वह व्यक्ति किसी दूसरे की सहायता करेगा तो उसको देखकर भी कम से कम एक और व्यक्ति वह काम करने के लिए प्रेरित होगा। इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ती जाती है और आप अकेले कई व्यक्तियों को प्रभावित कर सकते हैं।

वैसे भी आज के दौर में आत्मीयता की बहुत आवश्यकता है। कहीं छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार तो कहीं बूढ़े मां बाप के ऊपर अत्याचार। कहीं जाति के नाम पर प्रताड़ना तो कहीं झूठी शान के लिए अपने ही बच्चों को जिंदा जला देना। एक व्यक्ति को मारने के लिए पूरी भीड़ का इकट्ठा हो जाना या अपने से कमजोर को दबाना। क्या यह सब सही है? और तो और, हमने जानवरों को भी नहीं बख्शा है। इन बेजु़बान जीवो को प्रताड़ित करने में कुछ लोगों को अंदरूनी सुकून मिलता है। और इन सब के वीडियोज़ बनाकर सोशल मीडिया में डाले जाते हैं। यह कैसे समाज में हम जी रहे हैं? क्या 84 लाख योनियों के बाद हम इसलिए मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं? आज संसार में भुखमरी, बीमारी, प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, मानवीय अधिकारों का हनन और अब विश्व स्तरीय महामारी जैसे अनेकों विपदाएं हमारे सामने चुनौतियों के रूप में खड़ी हैं। लाखों करोड़ों लोगों को आपकी और हमारी सहायता की जरूरत है। हम हर एक व्यक्ति तक तो नहीं पहुंच सकते हैं, पर यदि आप एक व्यक्ति के जीवन में भी बदलाव ला सकते हैं या उससे कष्ट विहीन कर सकते हैं, तो आपका जीवन सफल है। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है – “आप क्या करते हैं वह इ तना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कि आप इसे करें।”

लेखिका: निधि सत्यव्रत चतुर्वेदी

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